Nazish Pratapgarhi Urdu Ghazal: ‘फूट चुकी हैं सुब्ह की किरनें सूरज चढ़ता जाएगा, रात तो ख़ुद मरती है सितारो तुम को कौन बचाएगा’. आप इस शायरी से बिल्कुल वाकिफ होंगे. दरअसल, यह शायरी कौमी शायर नाज़िश प्रतापगढ़ी (Najish Pratapgarhi) ने लिखी है. उन्होंने 10 अप्रैल, 1984 में दुनिया को अलविदा कह दिया था.
10 April, 2024
Nazish Pratapgarhi Urdu Ghazal : उर्दू के सुप्रसिद्ध शायर और ग़ज़लकार नाज़िश प्रतापगढ़ी (Najish Pratapgarhi) को भला कौन नहीं जानता? उनकी नज़्में और और ग़ज़लें आज भी लोगों के दिलों को सुकून पहुंचाती हैं. उनका जन्म 22 जुलाई, 1924 को लखनऊ में हुआ था. नाज़िश साहब जब कक्षा-9 में थे तभी से ‘हिन्दुस्तान छोड़ो आन्दोलन’ शुरू हो गया था. भारत से नाज़िश को बड़ा लगाव था. इन्होंने इसमें बढ़-चढ़कर भागेदारी की और उन्होंने देश की बंटवारे की मांग को ग़लत ठहराते हुए इसका विरोध किया और ‘एक राष्ट्र एक कौम’ की बात पर बल दिया. उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से भी इसका विरोध किया. वहीं, देश के बंटवारे के बाद उनके माता-पिता और भाई-बहन आदि सभी पाकिस्तान चले गए, लेकिन नाज़िश ने भारत में ही रहना स्वीकार किया. उन्होंने बहुत सी उम्दा नज़्में और ग़ज़लें लिखी हैं. शेर-ओ-शायरी के जरिये लोगों के दिलों में अमिट 10 अप्रैल, 1984 में उन्होंने भारत को अलविदा कह दिया. उन्हें ग़ालिब पुरस्कार और मीर पुरस्कार जैसे उर्दू साहित्य के सर्वोच्च सम्मान से भी सम्मानित किया गया था.
नाज़िश प्रतापगढ़ी का देशप्रेम
नाज़िश प्रतापगढ़ी (Najish Pratapgarhi) का यह जुर्म था कि वह एक सच्चे राष्ट्रवादी थे, साल 1950 में बंटवारे के बाद उनके भाई-बहन और मां पाकिस्तान चले गये और जाने से पहले सारी ज़मीन- जायदाद और घर बेंच दिये. नाज़िश के माता-पिता ने उनको भी पाकिस्तान जाने के लिए कहा, लेकिन देशप्रेम के चलते नाजिश ने इन्कार कर दिया. उस समय नाज़िश बेरोज़गार थे और जीवनयापन करने के लिए संघर्ष कर रहे थे. ऐसी परिस्थिति में परिवार का विरोध करके उन्होंने अपनी मातृभूमि भारत में ग़रीबी में ही रहना पसन्द किया, जो कि उनके देशप्रेम की अनूठी मिसाल है.
उन्होंने खुद्दारी पर कभी आंच नहीं आने दी और किसी भी काम के लिए कभी हाथ नहीं फैलाए, जिसके बाद उनका यह देश प्रेम और शायराना अंदाज दुनिया में उनकी लोकप्रियता कायम करता चला गया. इतना ही नहीं उनके प्रसंशकों में आम आदमी से लेकर देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी शामिल थे. पं. जवाहर लाल नेहरू, इन्दिरा गांधी, ज्ञानी जैल सिंह, लाल बहादुर शास्त्री, फखरुद्दीन अली अहमद, आदि भी उनके शायरी को काफी पसंद किया करते थे. नाज़िश प्रतापगढ़ी की कौमी शायरी ने उनके देशभक्ति के जज्बातों को उभारने में बेहद मद्द की.
यहां नाज़िश प्रतापगढ़ी की बरसी के दिन मशहूर गज़ल (Urdu Ghazal) पढ़ें-
फूट चुकी हैं सुब्ह की किरनें सूरज चढ़ता जाएगा
रात तो ख़ुद मरती है सितारो तुम को कौन बचाएगा
जो ज़र्रा जनता में रहेगा वो तारा बन जाएगा
जो सूरज उन को भूलेगा वो आख़िर बुझ जाएगा
तन्हा तन्हा रो लेने से कुछ न बनेगा कुछ न बना
मिल-जुल कर आवाज़ उठाओ पर्बत भी हिल जाएगा
माना आज कड़ा पहरा है हम बिफरे इंसानों पर
लेकिन सोचो तिनका कब तक तूफ़ां को ठहराएगा
क्यूँ चिंता ज़ंजीरों की हथकड़ियों से डरना कैसा
तुम अंगारा बन जाओ लोहा ख़ुद ही गल जाएगा
जनता की आवाज़ दबा दे ये है किस के बस की बात
हर वो शीशा टूटेगा जो पत्थर से टकराएगा
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